आज की तारीख में ये जेल एक हेरिटेज साइट है। और tourists इसे देखने बहुत दूर-दूर से आते हैं। इन्हीं में से एक था - प्रतीक, जो अपनी फोटोग्राफी के प्रोजेक्ट को पूरा करने अंडामन और निकोबार आइलैंड के सेल्यूलर जेल गया। इस जेल में हमारे देश की आजादी के दौरान क्या-क्या हुआ था, हम सोच भी नहीं सकते।
प्रतीक ने वहाँ जाने के साथ ही एक गाइड को अपने साथ ले लिया, ताकि उसे जेल घूमने में कोई दिक्कत ना हो और कोई भी information वो miss out ना करे।
सबसे पहले गाइड ने उसे hanging room दिखाया, जहाँ कैदियों को फांसी की सजा दी जाती थी। पूरे जेल के comparison में ये जगह काफी ठंडी थी। प्रतीक ने वहाँ बहुत सारी फोटोग्राफस क्लिक करी और उसके बाद वहाँ से निकल ही रहा था कि पीछे से एक आवाज आई। पीछे पलटा तो उसे हवा में उड़ती हुई ज़रा सी धूल दिखाई दी।
इसके बाद गाइड प्रतीक को ले गया torcher room, जहाँ उस जमाने के torcher को आज के लोगों को समझाने के लिए पुतले रखे हुए थे। प्रतीक को इस कमरे में सड़ी हुई महक आ रही थी। इसलिए उसने तुरंत तस्वीरें खींचीं और गाइड से पूछा की ये महक कैसी है। गाइड ने कहा- "अ.....पता नहीं सर, इस कमरे से बाहर चलते हैं।" जैसे ही उन्होंनें कमरे से बाहर कदम रखा, प्रतीक ने एक आवाज सुनी, जो गाइड को सुनाई ही नहीं दी।
Torcher room के बाद गाइड ने उसे सेल्यूलर जेल का ग्राउंड दिखाया। चिलचिलाती धूप में ये खाली मैदान रेगिस्तान जैसा बेजान लग रहा था। और इसी सूखे पड़े से मैदान से प्रतीक को एक आवाज सुनाईं दी, जो इस बार गाइड ने भी सुनी। ये आवाज एेसी थी मानो कई लोंगों को बेड़ियों में जकर कर रखा गया हो और वो मैदान में काम कर रहे हो। इस बार गाइड ने प्रतीक से कहा- "सर, जिन आवाजों को हमेशा के लिए इस जेल ने दबा दिया, वो कभी तो खुल कर सामने आएँगें ही न।" प्रतीक उसकी बात कुछ समझ नहीं पाया। सवाल पूछने के लिए उसने अपना मुँह खोला, कि गाइड ने कहा- " चलिए आपको कैदियों के कमरे में लेकर चलता हूँ।"
ये कैदियों का कमरा एक कालकोठरी थी, जहाँ सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था। रौशनी और सांस लेने के लिए उस कालकोठरी के छत पर एक छोटा सा छेद बना हुअा था। ये कमरा भी फांसी वाले कमरे की तरह ठंडा था। और यहाँ भी सुनाई दे रही थी एक आवाज, जैसे कोई दिवार को खुरच रहा हो। प्रतीक ने फ्लैश ऑन करके इस कमरे में भी फोटोग्राफस खींचीं। और एक आखिरी तस्वीर के रूप में उसने उस गाइड के साथ अपनी एक सेल्फी खींचीं।
हॉटेल आकर प्रतीक फ्रेश हुआ और डिनर करके उसने कैमरे के s.d. card से सारी फोटोग्राफस अपने लैपटॉप में transfer करी। प्रतीक के क्लिक किये हुए फोटोग्राफस एक अलग ही कहानी बयान कर रहे थे।
आखिर उन तस्वीरों में एेसा क्या था, जिससे प्रतीक की नींद उड़ गई।
ये सब जानेंगें इस कहानी के अगले भाग में।